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यू ही जिंदगी के रहो में

यू ही जिदंगी के राहों मे चलते-चलते
कुछ अनजाने-अजनवी मिल जाते हैं
थोङी बातें होती है ,नजरें मिलती है
उसके बाद जो मेरे साथ होता है
क्या वो उनके साथ भी होता है?

कि दिल बहला सा,मन खोया सा,इक खुमार सा चढ़ जाता है
सारा जहां अपना सा प्यारा-प्यारा  लगता है
गर ढूढों दुनिया में सबसे खुशहाल व्यक्ति
तो वो वंदा कोई और नही वो अपुन होता है
क्या उनका भी चित इन बहकी ख्यालों से ऐसे ही हर्षित होता है?

डेढ़ घंटे कि लंच ब्रेक लगे लंबी
दो घंटे कि प्रैक्टिकल क्लास लगे छोटी
और रात तो मानो ईतनी धिमी गुजरे
जैसे वक्त अमावस्य को पूर्णिमा पाने मे लगे
क्या उनकी भी रातें यू ही थम-थम गुजरा करती है?

भिङ-ए-महफिल या काफिले हो कितनी भी घनी चाहे
दिले बेकरार,हो बेहाल उनकी अदा के घात से कितनी भी चाहे
फिर भी मेरे पागल नैन उनपे आकर ही अटके
उनके नैनन का जाम मन पीने को हरदम तरसे
क्या उनकी भी आँखे इक दिदार को ऐसे ही भटके?

मुझे उनसे मोहब्बत तो हुई है जबरदस्त
पर क्या करूं मेरी हालत है कुछ ऐसे पस्त
और-तो-और उनके आशिक भी होंगे आठ-दस
गये जो वो फ्यूचर मे कहीं पलट, हो न जाए पतंग -ए-मोहब्बत का क्रैश
क्या उन्हे भी ये डरावनी ख्यालें रातों में सताती है।
          *                *                *
               This poem,I composed after 2-3 months of start(probably 16 july 2019) of college life in BHU,when a girl of past same brand stimuli me by loving me and sowing inclination towards me for no reason and if possibly one is there then that might be my bad posture,polite nature and hidden care  for her, all these I do for her is due to same brand not for that intension which now she has for me.I was intended for good friendsship with her only.But she was two steps ahead of me & she fall in love.I realize it very late and I was amazed and sad on her this sily choice because I am not talented,not good looking,not so loving.So what I thought about this incident I write it in as poem.

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